ग्वालियर : किसी इंसान की जिंदगी में किस्मत एक ऐसी चीज है, जो इंसान को फर्श से अर्स और अर्स से फर्श पर ला देती है. किस्मत का कुछ ऐसा ही खेल पिछले दिनों ग्वालियर में देखने मिला था. जहां एक शख्स जो कभी अपने डिपार्टमेट का एक शानदार पुलिसकर्मी ही नहीं, बल्कि शार्प शूटर हुआ करता था, वह ग्वालियर के झांसी रोड इलाके में सालों से सड़कों पर लावारिस घूमता पाया गया था.
एक ऐसी ही किस्मत की कहानी एक बार फिर ग्वालियर से सामने आई है, जहां देश के सबसे प्रतिष्ठित आईआईटी कानपुर से पास आउट मैकेनिकल इंजीनियर और प्रतिष्ठित कंपनियों में काम कर चुका शख्स ग्वालियर की सड़कों पर भीख मांगने को मजबूर है.
ग्वालियर में सड़क पर लावारिस लेटे इस बुजुर्ग भिखारी पर एक केयरटेकर की नजर पड़ी तो वे उसे आश्रम स्वर्ग सदन ले गए. जहां अभी उनकी देखभाल की जा रही है. यह बुजुर्ग भिखारी आईआईटी कानपुर से पास आउट सुरेंद्र वशिष्ठ हैं, जो ग्वालियर की सड़कों पर कई सालों से भीख मांग रहे थे.
दरअसल, ग्वालियर की कपकपाती ठंड में फुटपाथ पर 90 वर्षीय सुरेंद्र वशिष्ठ लेटे हुए थे, जिन्हें जोर से ठंड लग रही थी. उसी समय वहां से गुजरते शहर के केयरटेकर विकास गोस्वामी की नजर पड़ी. विकास ने यूं ही उन बुजुर्ग से हाल-चाल और नाम पूछा तो बुजुर्ग ने फर्राटेदार अंग्रेजी में बात कर जवाब दिया. उन्होंने अपना नाम सुरेंद्र वशिष्ठ बताया.
सुरेंद्र वशिष्ठ साल 1969 में आईआईटी कानपुर से पास आउट हैं. 1972 में लखनऊ से एलएलएम की डिग्री हासिल की. यह सारी बातें सुन विकास बुजुर्ग को स्वर्ग सदन आश्रम ले गये. वहां उनकी देखरेख की जा रही है.
ग्वालियर के ही रहने वाले हैं आईआईटी पास सुरेंद्र वशिष्ठ
जब ईटीवी भारत ने सुरेंद्र वशिष्ठ से बात की तो उन्होंने शानदार अंग्रेजी में बताया कि वे ग्वालियर के ही रहने वाले हैं. उनका जन्म ग्वालियर में ही महाडिक साहब के बाड़े में हुआ था. उनके पिता उस समय देश विदेश में ख्यातिप्राप्त जियाजी राव कॉटन मिल लिमिटेड में फैब्रिक के बड़े सप्लायर थे. उन्होंने बताया कि पिता ने उनकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं रखी थी. वे 8 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. उनकी तीन बहनें और तीन भाइयों की मौत हो चुकी है. जबकि एक बहन का इंदौर में है.
90 साल की उम्र में भी फर्राटेदार बोल रहे है अंग्रेजी
ईटीवी भारत से बात करते हुए सुरेंद्र ने बताया कि उन्होंने आईआईटी कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियर की डिग्री हासिल की है. उसके बाद उन्होंने लखनऊ की डीएवी कॉलेज से एलएलएम की डिग्री हासिल की. वह दिल्ली में कनॉट प्लेस पर खादी भंडार में बड़े पद पर रहे हैं. लेकिन उनकी यह हालत कैसे हुई यह अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है. सुरेंद्र वशिष्ट ने कहा कि उन्होंने जीवन में नामी-गिरामी कंपनी में बड़े पद पर काम किया है. उनके आज भी बड़े लोगों से संबंध हैं.लेकिन उन्होंने पैसे को कभी महत्व नहीं दिया.
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दुर्घटना में हुई पत्नी की मौत
आश्रम के संचालक का कहना है कि सुरेंद्र वशिष्ठ अपुष्ट रूप से कुछ-कुछ जानकारी दे पा रहे हैं. उनका एक दूर का रिश्तेदार भी यहां गांधीनगर में रहता है. जो फिलहाल बाहर है. उसने भी अपने अंकल के मैकेनिकल इंजीनियर होने की बात कंफर्म की है, लेकिन भतीजा उन्हें अविवाहित बताता है. जबकि सुरेंद्र वशिष्ट खुद को शादीशुदा बता रहे हैं. उन्होंने बताया कि एक दुर्घटना में पत्नी छोड़ कर चली गई.
उत्तर प्रदेश के बरेली जाना चाहते हैं सुरेंद्र
अब सुरेंद्र वशिष्ठ उत्तर प्रदेश के बरेली में जाना चाहते हैं. जहां वे अपने अंतिम दिनों की यात्रा पूरी करना और अपने संस्कार को अपने शुभचिंतकों और दूर के रिश्तेदारों के बीच पूरा करना चाहते हैं. खास बात यह है कि सुरेंद्र वशिष्ठ ने अपने जीवन में तमाम पैसा कमाया लेकिन उन्हें कभी भी रुपया पैसा अपने पास नहीं रखा. मंदिर और गरीबों को अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा वह दे देते थे. सिर्फ खाने-पीने के लिए ही कुछ पैसे अपने पास रखते थे.